tag:blogger.com,1999:blog-84349795560069181512024-02-08T09:22:10.170-08:00नारी बेबसी मेरे मन की उलझनमै रजनी नैय्यर मल्होत्रा
मै संगणक विज्ञान की शिक्षिका हूँ ..एक कवियत्री , शायर, एक लेखिका, मेरा लालन पालन झारखण्ड के रांची में विवाहोपरांत बोकारो थर्मल .
नारी बेबसी मेरे मन की उलझन ये मेरे ब्लॉग का नाम है, नारी की सामाजिक सिथिति ,उसका
अब तक के सफ़र में उसे क्या मिला उसने क्या खोया,ये उलझन मेरे मन में सदा रही जो मेरे मन के द्वंद को इसमें बखूबी शब्दों के जरिये मैंने पिरोने की कोशिश की है .......डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) http://www.blogger.com/profile/00271115616378292676noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-8434979556006918151.post-71893250479023872972011-08-18T20:21:00.000-07:002013-01-06T07:36:03.007-08:00भारत के आजादी के बाद भारतीय नारी का सफ़र<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शीर्षक ( भारत के आजादी के बाद भारतीय नारी का सफ़र क्या पाया क्या<br />
खोया ? (१९४७ से २०११ तक )<br />
<br />
हिन्दुस्तान को आजाद कराने में जिन स्वतन्त्रता सेनानियों ने संघर्ष किया<br />
उनमे वीरों के साथ वीरांगनाएँ भी थीं जिन्होंने कदम से कदम मिला कर अपना<br />
साथ दिया जान तक न्योछावर कर दी | गुलामी की बेड़ियाँ काटने में भारतीय<br />
नारियों ने भी पुरुषों के साथ अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई |<br />
स्वतंत्र होने से ज्यों ज्यों माँ भारती के रूप लावण्यता में बढ़ोतरी<br />
होती गयी उसी तरह उसकी गोद में पैदा हुई बालिकाओं को भी स्वतन्त्रता के<br />
अधिकार मिलने लगे, धीरे धीरे शुरू हुआ नारी शिक्षा पर जोर जिसका<br />
प्रभाव देश के हर कोने में पड़ने लगा | और इसकी नीव सन 1916 से ही पड़<br />
चुकी थी , इस समय दिल्ली में लेडी हार्डिंग कॉलेज की स्थापना हुई तथा<br />
श्री डी.के. कर्वे ने भारतीय नारियों के लिए एक विश्वविद्यालय की<br />
स्थापना की जिसमे सबसे अधिक धन मुंबई प्रान्त के एक व्यापारी से मिलने के<br />
कारण उसकी माँ के नाम से विश्व विद्यालय का नाम श्रीमती नाथी बाई थैकरसी<br />
यूनिवर्सिटी की स्थापना की | इसी समय से मुस्लिम नारियों ने भी उच्च<br />
शिक्षा में प्रवेश शुरू किया, 1946- 47 में प्राइमरी स्कूल से लेकर<br />
विश्वविध्यालय तक की कक्षाओं में अध्ययन करनेवाली छात्रों की कुल संख्या<br />
41,56,742 हो गयी| भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् यद्धपि नारी शिक्षा<br />
में पहले की अपेक्षा बहुत प्रगति हुई तथापि अन्य पाश्चात्य देशों की<br />
समानता वह नहीं कर सकी |नारी शिक्षा में प्राविधिक, व्यावसायिक, नृत्य<br />
संगीत की शिक्षा में विशेष प्रगति हुई | स्वतन्त्रता के 10 वर्ष के बाद<br />
नारी का प्रवेश शिक्षा के हर क्षेत्र में होने लगा | स्त्रियाँ उच्च<br />
शिक्षा प्राप्त कर अध्यापन, चिकित्सा कार्य ,कार्यालयों में ही अधिकतर<br />
काम करने लगीं. | परन्तु ये विकास सिर्फ शहरी क्षेत्रों में ज्यादा दिखाई<br />
दिया , ग्रामीण क्षेत्र में तो बेटियों का हाल वही पुराना रहा , उन्हें<br />
समुचित पढने की व्यवस्था ना देकर घरेलु कार्यों में लगाना और व्यस्क होने<br />
से पहले ही विवाह कर एक नहीं कई जिम्मेवारियों से बांधा जाता रहा |<br />
परन्तु जैसे जैसे देश में विकास की संभावनाएं बढ़ी संचार साधन , रेडियो<br />
,टेलीविजन, फिल्मे मिडिया जगत से रुब रु होने के बाद समाज में कुछ धीरे<br />
धीरे ये बदलाव ग्रामीण क्षेत्रों में भी आने लगे ,अब लड़कियां सिर्फ घरों<br />
में कैद ना होकर बाहर निकलने लगी पढने के लिए , उनका आत्मविश्वास और कुछ<br />
कर दिखाने की लालसा ने उन्हें ऊँची उड़ान भर आसमां तक को छूने का मौका<br />
दिया | जिसके कई उदाहरण हैं भारतीय महिला का पायलट होना , विमान परिचारिका<br />
के रूप में सेवा देना | एक के बढ़ते कदम कई के लिए मार्गदर्शन का काम<br />
करते हैं , और भारत के महिलाओं के लिए आगे बढ़ने का रास्ता ख़ुद महिलाओं ने<br />
ही खोला | अपने लगन और आत्मविश्वास से आज भारत के उच्च पदों पर कितनी<br />
महिलाएं आसीन हैं, हर क्षेत्र में वो पुरुषों के साथ कदम मिला कर कार्य<br />
कर रहीं हैं, उन्ही में से कई महिलाएं हैं जो आई. ए . एस , हैं ज्ञानपीठ<br />
पुरस्कार सम्मानित ,हैं अन्तरिक्ष में जा चुकी हैं, मुख्य चुनाव<br />
आयुक्त रह चुकी हैं. ओलम्पिक खेलों में सिनेमा में , हर क्षेत्रों में<br />
इनके कदम | किरण वेदी, लता मंगेशकर, इंदिरा गाँधी, सानिया मिर्ज़ा,<br />
कल्पना चावला. प्रमुख भारतीय नारी की गिनती में आती हैं. कुछ और भी हैं<br />
जो महिलाओं में अग्रणी हैं | ऐसे सामाजिक मानसिकता मध्यवर्ग में इतनी<br />
संकुचित रही है कि एक महिला का घर से बाहर जा कर काम करना नीचा समझा जाता<br />
रहा है.परम्परागत रूप से मध्यवर्ग में नारी का स्थान सिर्फ बच्चे पैदा<br />
करना उनको पालना घरेलु कार्यों को करना तक ही समझा जाता था ,उनका उच्च<br />
शिक्षा तक पहुचना दूर कि बात सोंचना भी लोग गलत समझते थे | कई माता पिता<br />
ऐसे थे जो बेटियों को हिसाब किताब तक कि पढाई सीखा कर साफ कह देते थे<br />
क्या करना है बेटियों को पढ़ा कर , क्या ससुराल जाकर नौकरी करना है इसे | आखिर<br />
चूल्हे और बच्चे ही तो सँभालने हैं, पर अब नारी भूमिका में फर्क तो आया<br />
है आज नारी घर व् बाहर दोनों भूमिका अच्छी तरह निभा रही है | एक लड़की<br />
पढ़ेगी तो पूरा घर पढ़ेगा समाज पढ़ेगा और फिर देश | कई लोग कहते हैं नारी<br />
जागरण से नारी शिक्षा से नारियों कि स्थिति में काफी सुधार हुए हैं पर आज<br />
भी ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी हालत वही हैं अशिक्षित होने के कारण वो<br />
वही पुरातन परम्परों में जकड़ी अपने वही सदियों पुराने दिन जी रही , ना तो<br />
आर्थिक रूप से संबल ना मानसिक रूप से , और जुल्म कि शिकार बन रही,<br />
अन्धविश्वास, और ढकोसले सबसे बड़ी बुराई ग्रामीण महिलाओं कि है और जब तक<br />
वो इस मानसिकता को नहीं बदलेंगी उनका शोषण होता रहेगा ,खास कर सारे नियम<br />
कानून उन्होंने पति परिवार बच्चो से सम्बन्धित बना रखे हैं जिसमे कई तो<br />
बेबुनियाद हैं जिनका कोई सरोकार नहीं जीवन से फिर भी हैं कि ढोए जा रही ,<br />
जो नहीं मानती उन बातों को वो भी सुखी हैं अपने घर परिवार में, फिर ये<br />
आडम्बर क्यों ?? महिला जितनी शिक्षित रहेगी उसके मनसिकता का विकास उतना<br />
ही अधिक होगा, प्रगति तो हो रहे महिलाएं विकास कर रही पर सम्पूर्ण नारी<br />
का विकास हो चूका है यदि ये समझें हम तो गलत है क्योंकि , आज भी आधी<br />
आबादी महिलाओं कि दर्द, घुटन ,और जुल्म पिछड़ेपन में गुजर रहे |जो पढ़ी<br />
लिखी हैं वो तो आर्थिक रूप से कहीं ना कही मजबूत हैं और उन पर जुल्म भी<br />
कम होते हैं पति परिवार ऐसी महिलायों पर जुल्म करते भी हो पर कम .<br />
क्योंकि वो शिक्षित होने के कारण अपने अधिकार को समझती है और उसके लिए<br />
मुँह भी खोलती है , आज का जो समाज का स्वरूप है पुरुष प्रधान, वो<br />
सिन्धुघाटी सभ्यता में नहीं था सिन्धुघाटी सभ्यता में मात्रिस्त्तात्मक<br />
समाज था, नारी ही समाज में सर्वेसर्वा थी,<br />
प्राचीन भारत में महिलाएं काफी उन्नत व् सुदृढ़ थीं, ऋग्वेद में नववधू को<br />
" सम्राज्ञी श्व्सुरे भव" का आशीर्वाद मिलता था तुम स्वसुर के घर कि<br />
स्वामिनी बनो " समाज में पुत्र का महत्व था, पर पुत्रियों कि भी खूब<br />
महता थी, स्व्प्नावास्व्द्तम में राजा पुत्री जन्म पर प्रसन्न होकर<br />
महारानी से मिलने जाते हैं| मनु ने भी बेटी के लिए सम्पति में चौथा<br />
हिस्सा का विधान किया उपनिषद काल में भी गार्गी और मैत्रयी का उल्लेख है,<br />
प्राचीन काल में भी सहशिक्षा व्यापक रूप से दिखती है, लव कुश के साथ<br />
आत्रेयी पढ़ती थी | उपनिषद्काल में नारी भी सैनिक शिक्षा लेती थी |<br />
मध्यकाल में नारी का सामाजिक हालात बदतर होता गया जो आज तक व्याप्त है |<br />
देवी कही जाने वाली नारी आज पुरुषों के जुल्म और सभ्य समाज के आडंबर से<br />
अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ रही ,आज पाखंडी व् आडम्बरी समाज जो<br />
मानव कि जननी है उसे जड़ से उखाड़ कर फेंक रहा | बेटियों को पैदा होने से<br />
पहले ही मार रहे | बेटी को पराया माननेवाले उसे कभी ह्रदय से लगा कर<br />
देखें ,बेटी का शोषण सबसे पहले घर से शुरू होता है फिर ये बीज धीरे धीरे<br />
सारे समाज में फैलता जाता है | बेटे बेटी के खान पान से लेकर शिक्षा में<br />
भेदभाव अब भी व्याप्त है यदि बेटियों को उच्च शिक्षा दिलाकर उन्हें अपने<br />
पैरों पर आर्थिक रूप से खड़े होने के लिए हर माँ बाप सहायता करेंगे तो<br />
जरुर बेटियों का शोषण होना कम हो जायेगा | आज जन्म से पहले लिंग परिक्षण<br />
कर कन्या भ्रूण को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जा रहा |<br />
पित्रिस्तातामक मानसिकता और बालकों को ज्यादा वरीयता देना ही इस<br />
कुकृत्य को जन्म दे रहा आज समृद्ध राज्यों में बालिका भ्रूण हत्या इस कदर<br />
बढ़ गया है जो बालको के अनुपात में चिंतनीय विषय बन गया है इस पर रोकथाम<br />
नहीं कि गयी तो जिस वंश को बढ़ाने के अंधे सोंच में लोग बालिकाओं कि<br />
हत्या करते जा रहे आनेवाले समय में वही अपने वंश के नष्ट होने पर आंसू<br />
बहायेंगे | लड़के यदि बीज हैं तो लड़की धरा है धरा नहीं रही तो बीज कहाँ<br />
पनप पायेगा | ये गन्दी मानसिकता अधिकांश पढ़े लिखे तबको में ज्यादा आ गयी<br />
है | एक तरफ एक देवी को मिटाते जा रहे और दूसरी तरफ मंदिरों में उसी<br />
दूसरी देवी रूप से लक्ष्मी , के लिए शक्ति के लिए ,विद्या के लिए,<br />
गिडगिडा कर भीख मांगते नज़र आते हैं | “यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते<br />
तत्र देवता” अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते<br />
हैं .... पर ये बात अब सिर्फ किताबों और पुरानो में रह गयी , आज नारी कि<br />
पूजा होती है पर भोग और विलास का साधन के रूप में ,आज अधिकांश पुरुष<br />
दूसरी स्त्रियों पर ज्यादा अपनी प्यास देखता है उसका स्पर्श चाहता है ,<br />
उसके आँखों में नारी के जिस्म के लिए भूख कि लाली दौड़ती नजर आती है नारी<br />
का परिधान चाहे कैसा भी हो वो अर्धनग्न है या सर से पांव तलक ढकी हुई<br />
लोलुप निगाहें उसके अंग अंग को लालची निगाहों से नापते हैं और मन में काम<br />
कि आग जाग गयी तो पूरी कोशिश करता है उसे हासिल करने कि ,यहाँ हासिल<br />
का मतलब अपनी अर्धांगिनी बनाना नहीं बस उसके जिस्म को नोचना और अपनी काम<br />
कि आग को शांत करना हर रोज कितनी मासूम बलात्कार कि शिकार होती हैं, और<br />
उसके तन के साथ साथ उसके मन का ,आत्मा का भी बलात्कार कर दिया जाता है<br />
|अपना सबकुछ लुटानेवाली को ही घर ,और समाज दोषी ठहराता है , और लुटनेवाला<br />
सीना तान कर घूमता है , आज कानून व्यवस्था , बने हैं नारी के उत्थान के<br />
लिए कई कदम उठाये गए हैं फिर भी हर रोज़ नारी नए नए जुल्म का शिकार हो<br />
रही ,बाहर कि बात को छोड़ दें , कहीं दहेज़ ना लाने से या कम लाने से<br />
बहू मारी जा रही , कहीं ख़ुद पति पत्नी को सता रहा | , घर में भी कहाँ<br />
सुरक्षित है नारी , किसी भाई ने बहन के साथ, तो किसी पिता ने बेटी के साथ<br />
,किसी देवर ने भाभी के साथ जेठ ने ससुर ने आये दिन घटनाएँ सुनने को मिलते<br />
हैं | कितनी नारियां है जो अपने ही परिवार से सतायी हुई हैं पर अपनी<br />
बदनामी के डर से मुँह नहीं खोलती ,और यदि चाहे भी तो घर के दबाव के कारण<br />
जुबा सी लेती हैं | आज धीरे धीरे नारी स्वतंत्र हो रही अपने पैरों पर<br />
खड़ी हो रही , अपना अस्तित्व पहचान रही , और कई मामलों में पुरुषों से<br />
आगे हैं और कितनी जगहों पर इसी विषम दृष्टि के कारण कुंठित मानसिकता वाले<br />
पुरुष नारी पर उत्पीडन करते हैं , यदि समाज कि ये मानसिकता है कि नारी<br />
घर में नहीं बाहर असुरक्षित है तो ये धारणा उनका झूठा घमंड को बनाये<br />
रखने के लिए है जो ये नहीं चाहते कि उनसे जूडी स्त्री स्वावलंबी हो<br />
आर्थिक रूप से अपने को मजबूत कर सके | घर से बाहर हुए जुल्म को वो आसानी<br />
से बता पाती है आवाज़ उठाती है समुचित कारवाही के लिए , पर नारी घर<br />
में सबसे ज्यादा असुरक्षित है क्योंकि वो घर में हुए जुल्म को अपनी और<br />
परिवार के झूठे इज्ज़त कि डर से बाहर नहीं खोलती , इसमें नारी का कहाँ<br />
दोष है , दोष है तो पुरुषों कि गन्दी मानसिकता पर, और जो महिलाएं इस<br />
कुकृत्य में शामिल होती हैं थोड़े लालच के कारण वो ये भी नहीं जानती उनके<br />
एक घिनौने काम से पूरी जाति बदनाम होती है | जैसे सास बनकर बहू पर जुल्म<br />
, पुत्र की माँ बनने कि ललक में पुत्री को कोख में ही मार देने में एक<br />
बार भी नहीं हिचकती ये नारियां कि मै भी एक दिन बेटी थी आज माँ हूँ,<br />
कितनी ऐसी महिलाएं हैं जो बेबाकी से कहती हैं मुझे बेटी नहीं बेटा ही<br />
चाहिए , यदि ये मानसिकता नहीं बदलेगी समाज कि तो मानव का अस्तित्व मिटने<br />
में देर नहीं...........आज़ादी के बाद से अब तक नारी ने काफी प्रगति कि है<br />
धीरे धीरे उन्हें पढने से लेकर अपने पैरों में खड़े होने के आधार मिले ,<br />
पर अभी भी उसे पूर्ण रूप से आज़ादी नहीं मिली अपनी इच्छा से जीने कि आज़ादी<br />
मन पसंद वर चुनने कि आज़ादी, और अपनी इच्छा से बिना किसी खौफ के किसी भी<br />
जगह आने जाने कि आज़ादी | समय ने धीरे धीरे नारी के जीवन को और कठोर बना<br />
दिया जहाँ उसे मिटाने कि पूरी तैयारी कर ली गयी है ... यदि आज मानसिकता<br />
नहीं बदले तो एक दिन ये त्यागशील ,ममतामयी, नारियां प्रलय बन कर फूट<br />
पड़ेंगी जिससे संहार निश्चित है.......आज जिन पुरुषों को स्त्री कि<br />
अहमियत नहीं मालूम उन्हें जरुरत है वेदों और शास्त्रों का पठन करना<br />
क्योंकि वहा नारी को भगवान् का दर्जा दिया गया है |<br />
<br />
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"<br />
बोकारो थर्मल (झारखण्ड )</div>
डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) http://www.blogger.com/profile/00271115616378292676noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8434979556006918151.post-13232421665398256362011-01-31T03:57:00.000-08:002011-01-31T03:57:45.419-08:00ये आईना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">एक पुरुष ,<br />
एक स्त्री को ,<br />
भददी, भददी <br />
गलियां दे रहा था,<br />
उसके हाथ निरंतर,<br />
उस स्त्री की ,<br />
पिटाई कर रहे थे,<br />
कुछ लोग ,<br />
जिनमे स्त्रियों की <br />
संख्या ज्यादा थी ,<br />
पास से देख ,<br />
सुन रहे थे,<br />
भुनभुना रहे थे.<br />
आपस में कहते रहे,<br />
ये पति पत्नी का ,<br />
मामला है ,<br />
हमें इससे क्या ,<br />
ये कुछ भी करे.<br />
ये कह वहां से ,<br />
खिसक गए.<br />
कुछ दिनों बाद,<br />
एक पत्नी,<br />
अपने पति को,<br />
अपने हाथों से ,<br />
खिला रही थी,<br />
अपने घर के,<br />
प्रांगन में.<br />
तभी,पड़ी,<br />
उनदोनो पर,<br />
एक ,<br />
पड़ोसन की नजर,<br />
ये देख आसपास ,<br />
चर्चे फ़ैल गए ,<br />
कितने बेसरम हैं ,<br />
ये लोग,<br />
क्या पति पत्नी को<br />
ऐसे रहा जाता है.<br />
ये आईना ,<br />
हमारे सभ्य,<br />
समाज का,<br />
जिसमे,<br />
हम रहते हैं. <br />
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा"<br />
<br />
<br />
<br />
</div>डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) http://www.blogger.com/profile/00271115616378292676noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-8434979556006918151.post-12682592616278041192011-01-28T20:13:00.000-08:002011-01-28T20:13:34.237-08:00बेटी होना गुनाह है ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">बेटी माँ से ,<br />
बेटी होना गुनाह है ? <br />
माँ ,<br />
बस तीन बातें याद रख .....<br />
भगिनी ,<br />
भोग, <br />
भरण. <br />
तू इसी लिए ,<br />
पैदा हुई है. <br />
बेटी ने कहा,<br />
ये ठीक नहीं माँ ,<br />
मुझे,<br />
ये बंधन ही नहीं,<br />
ख़ुद का,<br />
फैसला भी चाहिए,<br />
जो मुझे ,<br />
अपने रूप से जीने दे,<br />
माँ ,<br />
अच्छा होता ,<br />
ये कुल कलंकिनी,<br />
पैदा ही ना लेती.<br />
तू तो ,<br />
नारी जाति के ,<br />
नाम पर ,<br />
कलंक है ,<br />
जो वर्षों से,<br />
चली आ रही ,<br />
इस ,<br />
मर्यादा को ,<br />
तोड़ने पर ,<br />
उतारू है. <br />
<br />
"रजनी नैय्यर मल्होत्रा "</div>डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) http://www.blogger.com/profile/00271115616378292676noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-8434979556006918151.post-64453910519848031382010-04-09T18:37:00.001-07:002010-04-09T18:37:38.392-07:00एक चुटकी सिंदूर के बदले, उसे साँसे गिरवी दे देती हैमेरे मन में काफी सालों से एक द्वंद चल रहा था,समाज में नारी के स्थान को लेकर,<br />
मन कुछ कड़वाहट से भरा रहा,आज काफी सोंचते हुए एक रचना लिख रही उनकी कुछ (नारी)<br />
की बेबसी पर जो .........ममता,त्याग,वात्सल्य ,विवशता संस्कार,कर्तव्य, एक चुटकी सिंदूर ........ और जीवनपर्यंत रिश्तों की जंजीर में बंधकर, अपनी हर धड़कन चाहे इच्छा से,चाहे इच्छा के बिरुद्ध बंधक रख देती है..जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त वह बस रिस्तों को निभाने में ही रह जाती है,विवाह के बाद विवाह के पूर्व खुलकर अपनी साँसें भी नहीं ले पाती,पर विवाह के बाद नए रिस्तों में बंध कर वो तो अपना अस्तित्व ही खो देती है, वो खुद को गिरवी रख देती है,अपने ही अर्धांगिनी होने का मतलब भी खो देती है.......... आशा है मेरे विचारों<br />
से आपलोग सहमत हों.......<br />
<br />
मेरी एक कोशिश है (उन नारियों के लिए जो खुद को बेबस बना कर रखी हैं ) उनके लिए ... बंधन में बंधो,पर खुद को जक्ड़ो नहीं..........<br />
<br />
अर्धांगिनी का मतलब समझ जा,<br />
तेरी खुद की सांसों पर भी,<br />
तुम्हारा अधिकार है,<br />
<br />
एक चुटकी सिंदूर के बदले,<br />
उसे साँसे गिरवी दे देती है,<br />
<br />
लहू से अपने,सींचे आँगन जिसका,<br />
खुशियाँ अपनी सूद में उसे देती है,<br />
<br />
त्याग और ममता की मूरत बनकर,<br />
कब तक और पिसोगी तुम,<br />
<br />
आँखों में आँसू रहेगा कबतक ?<br />
कबतक होंठों पर झूठी ख़ुशी होगी ?<br />
<br />
कब तक रहोगी सहनशील ?<br />
कब तक तेरी बेबसी होगी ?<br />
<br />
त्याग ,दया,ममता, में बहकर,<br />
अबतलक पिसती आई,<br />
<br />
जिस सम्मान की हक़दार हो,<br />
अपनी खता से ही ना ले पाई,<br />
<br />
शर्म, हया तेरा गहना है,<br />
बस आँखों में ही रहे तो काफी है,<br />
<br />
खुद को बेबस जानकार,<br />
ना दबा दे आरजू सारी,<br />
<br />
पहचान ले खुद को,<br />
तेरा ही रूप रही दुर्गा काली,<br />
<br />
मांगने से नहीं मिलता,<br />
छिनना पड़ता अधिकार है,<br />
<br />
अर्धांगिनी का मतलब समझ जा,<br />
तेरी खुद की सांसों पर भी,<br />
तुम्हारा अधिकार है,डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) http://www.blogger.com/profile/00271115616378292676noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-8434979556006918151.post-48574373680654895082010-04-09T05:26:00.001-07:002010-04-09T05:26:13.439-07:00सिसक रही है अपनी बेबसी पर आज की सीताआज की सीता<br />
सिसक रही है अपनी बेबसी पर आज की सीता,<br />
हर रावण आज है अपनी मक्कारी से जीता,<br />
कभी सीता ने एक तिनके से डराया था रावण को,<br />
विश्व विजेता कहलानेवाला डर गया था उस तिनके को लांघन को,<br />
थी शक्ति स्वरूपा, वो सति रूप अंशी,<br />
तभी तो रोका न कर पाया रावण कुछ वैसा,<br />
आज तो कदम कदम पर रावण खड़े हैं,<br />
देखें अकेली अबला को तो पीछे पड़े हैं,<br />
एक था रावण तो थी एक सीता,<br />
पर आज तो एक सीता हजारों है रावण,<br />
थर थर कांपती रह जाती पड़े जब सामन,<br />
गिला करे अपनी तकदीर से जो तुने अबला बना दिया,<br />
क्यों न अपनी शक्ति का एक अंश ही प्रदान किया,<br />
शक्ति तुने औरत होकर खुद औरत को न समझा,<br />
अपनी शक्ति का तू जो एक अंश ही देती,<br />
रहती ना अबला ये लुटती न अपने लाज को,<br />
जहाँ जरूरत पड़ जाती वो बन जाती चंडी काली,<br />
हो पाता तेरा ये थोड़ा उपकार तो,<br />
आज कर देती हर रावण का संहार वो,<br />
जो नजरें उठाई,जो हाथ बडाई ,किसी ने अबला जान कर,<br />
जानकर वो भी रह जाता उसकी शक्ति मान कर,<br />
सिसक रही है अपनी बेबसी पर आज की सीता,<br />
हर रावण आज है अपनी मक्कारी से जीता,<br />
एक हैं दोनों रूप अलग है,<br />
फिर क्यों एक शक्ति स्वरूपा कहलाती है,<br />
एक अकेली अबला ही रह जाती है,<br />
हे शक्ति क्यों तेरे आँखों के सामने,एक शक्ति लूट जाती है,<br />
चाह कर भी वो अपना सर्वस्व बचा नहीं पाती है,<br />
आकर इस दुनिया से रावण का संहार कर,<br />
या दे दे वो शक्ति,अपना वो अंश प्रदान कर,<br />
कर सके ये भी तेरी तरह महिषासुर का संहार,<br />
कर ना पाए अबला के लाज पर कोई जान अबला वार,<br />
सिसक रही है अपनी बेबसी पर आज की सीता,<br />
हर रावण आज है अपनी मक्कारी से जीता,डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) http://www.blogger.com/profile/00271115616378292676noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8434979556006918151.post-43031797809226076482010-04-08T11:20:00.000-07:002010-04-08T11:20:05.972-07:00मुझे क्यों मिटा रहे हो ?(एक अजन्मी लड़की की मन की व्यथा.)मुझे क्यों मिटा रहे हो ?<br />
मुझसे ही तुम्हारा अस्तित्व है,<br />
फिर मुझे क्यों मिटा रहे हो?<br />
दुनिया में आने से पहले मेरा निशां मिटा रहे हो,<br />
मेरी भी तमन्ना है दुनिया में आने की,<br />
आपकी तरह दुनिया को आजमाने की,<br />
जब सुनते हो आप कोई नया मेहमां घर आ रहा है,<br />
हो जाते हो बेकाबू ऐसे,बिना पिए ही नशा छा रहा है,<br />
मेरा पता चलते ही ऐसे मुर्झाते हो,<br />
जैसे मै नही कोई बोझ आ रहा है,<br />
जब चलता है पता आनेवाला मेहमां है लड़की,<br />
जेबों में आपकी छा जाती है कड़की,<br />
जैसे आपके जिगर का टुकडा नहीं कोई कोढ़ हो,<br />
कह देते हो झट से लड़का होता तो रख लेते,<br />
और जन्म लेने से पहले मुझे मार देते हो,<br />
मानते हो अगर कन्या का जन्म अभिशाप है,<br />
तो जन्म से पहले इसको मिटाना,सबसे बड़ा पाप है,<br />
कन्या जन्म नहीं,हमारा समाज एक अभिशाप है,<br />
ये धारणा आखिर कब तक मन में धरी रहेगी,<br />
सब गुणों से पूर्ण होकर भी बेटी कब तक शून्य रहेगी,<br />
बेटा चाहे औगुन से भरा हो,वो घी का लड्डू कहलाता है,<br />
चड़ा है जो बेअक्ल का पर्दा हमारे समाज पर,<br />
पता नहीं ये कब उतरेगा इस तुलना की कसौटी से,<br />
एक गाड़ी को चलाने के लिए जैसे दो पहिये की जरूरत है,<br />
वैसे ही तो समाज की बेल को बढ़ाने के लिए दोनों ही पूरक हैं,<br />
एक की कमी से समाज चल नहीं पायेगा,<br />
यही हाल रहा तो धीरे धीरे संसार से,<br />
लड़कियों का अस्तित्व ही मिट जाएगा,<br />
समाज की इस बढ़ती बेल को कीट लग जाएगा,<br />
जो वंश बेल की रफ्तार को रोक लगायेगा,<br />
हमारा समाज बढ़ेगा नहीं,पतन के गर्त में गिर जाएगा,<br />
मुझे क्यों मिटा रहे हो?<br />
मुझसे ही तुम्हारा अस्तित्व है,<br />
फिर मुझे क्यों मिटा रहे हो,<br />
दुनिया में आने से पहले,मेरा निशां मिटा रहे हो.डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) http://www.blogger.com/profile/00271115616378292676noreply@blogger.com2