मेरे मन में काफी सालों से एक द्वंद चल रहा था,समाज में नारी के स्थान को लेकर,
मन कुछ कड़वाहट से भरा रहा,आज काफी सोंचते हुए एक रचना लिख रही उनकी कुछ (नारी)
की बेबसी पर जो .........ममता,त्याग,वात्सल्य ,विवशता संस्कार,कर्तव्य, एक चुटकी सिंदूर ........ और जीवनपर्यंत रिश्तों की जंजीर में बंधकर, अपनी हर धड़कन चाहे इच्छा से,चाहे इच्छा के बिरुद्ध बंधक रख देती है..जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त वह बस रिस्तों को निभाने में ही रह जाती है,विवाह के बाद विवाह के पूर्व खुलकर अपनी साँसें भी नहीं ले पाती,पर विवाह के बाद नए रिस्तों में बंध कर वो तो अपना अस्तित्व ही खो देती है, वो खुद को गिरवी रख देती है,अपने ही अर्धांगिनी होने का मतलब भी खो देती है.......... आशा है मेरे विचारों
से आपलोग सहमत हों.......
मेरी एक कोशिश है (उन नारियों के लिए जो खुद को बेबस बना कर रखी हैं ) उनके लिए ... बंधन में बंधो,पर खुद को जक्ड़ो नहीं..........
अर्धांगिनी का मतलब समझ जा,
तेरी खुद की सांसों पर भी,
तुम्हारा अधिकार है,
एक चुटकी सिंदूर के बदले,
उसे साँसे गिरवी दे देती है,
लहू से अपने,सींचे आँगन जिसका,
खुशियाँ अपनी सूद में उसे देती है,
त्याग और ममता की मूरत बनकर,
कब तक और पिसोगी तुम,
आँखों में आँसू रहेगा कबतक ?
कबतक होंठों पर झूठी ख़ुशी होगी ?
कब तक रहोगी सहनशील ?
कब तक तेरी बेबसी होगी ?
त्याग ,दया,ममता, में बहकर,
अबतलक पिसती आई,
जिस सम्मान की हक़दार हो,
अपनी खता से ही ना ले पाई,
शर्म, हया तेरा गहना है,
बस आँखों में ही रहे तो काफी है,
खुद को बेबस जानकार,
ना दबा दे आरजू सारी,
पहचान ले खुद को,
तेरा ही रूप रही दुर्गा काली,
मांगने से नहीं मिलता,
छिनना पड़ता अधिकार है,
अर्धांगिनी का मतलब समझ जा,
तेरी खुद की सांसों पर भी,
तुम्हारा अधिकार है,
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प्रशंसनीय ।
जवाब देंहटाएंsukriya sir ji
जवाब देंहटाएंacchhe bhaav hain......aur kavita bhi.....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है अपने .............ये एक अच्छी सोच है !
जवाब देंहटाएंbhutnaath ji aapka name kya hai nahi janti .....sukriya aapne apne vicharon se mera margdarshan kiya aapke vichar se mai prabhavit hui aapne aur koshish karne ki ray di hai mujhe dusre blog ke post par ... koshish rahegi meri aur achha likhne ki.....
जवाब देंहटाएंravi ji abhar .......aapka
जवाब देंहटाएंkeep it regular
जवाब देंहटाएंji sukriya.......
जवाब देंहटाएंRajnee jee!! bhagwan ne naari roop ko issi liye banaya hi hai ki wo dusre ke liye khushi, tyag aur mamta ki pratimurti bane............bas jarurat hai to usse apne me ek purn abhimaan ko dikhane ki.........waise ye ho bhi raha hai!! dhire dhire waqt ke anusaar sab kuchh badal raha hai.............:)
जवाब देंहटाएंrachna ke liye kaya kahun..........superb!!
mukesh ji aapka hardik sukriya aapki sonch sarahneeya hai.......
जवाब देंहटाएंजहाँ पत्नी के कर्तव्य हैं वहाँ पति के कर्तव्य भी
जवाब देंहटाएंकम नहीं होते..दोनों दम्पति अपने धर्मानुसार
चलें तभी सामजस्य हो सकता है..वैसे सिन्दूर
से मांग भरना कोई आसान बात नहीं है..लाल
का अर्थ हर तरह का सुख और मांग भरना यानी
मांग पूरी करना..इस को आत्म ग्यान में यों समझे
नारी प्रकृति है और पुरुष चेतन है..इनका निरन्तर
मिलन होता है..वैसे आत्मिक दृष्टि से आत्मा न स्त्री
है न पुरुष..ये मान कर जीने से क्रान्तिकारी बदलाब
होता है .
aapke sujhav ka sukriya rajiv ji
जवाब देंहटाएंखूबसूरती से मन की बात कही है ..सत्य को उजागर करती रचना
जवाब देंहटाएंसच को उजागर करना हर किसी के बस की बात नहीं होती बंधन मै तो हर नारी बंधी हुई है इसमें कोई दो राइ नहीं दोस्त पर चाहते हुए भी अपनी बात किसी आगे रख नहीं पाती आपने इतनी हिम्मत से और इतने प्यार से इन सब बातो को कहा जिससे वो सभी जिनकी पहुच आप तक है कमसे कम एक बार अपने आपसे तो साक्षत्कार हो जायेगा और मै आपके इस होसले का तहे दिल से सवागत करती हु दोस्त
जवाब देंहटाएंaap sabhi ko mera hardik aabhar ...............kahin kahin aaj bhi nari dayniya sithiti ko ji rahi ........unhi ko sonch ye man is rachna ko likhne ko tatar hua.......sneh milta rahe
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